‘अहिंसा’ देश को स्वतंत्र कराने का मूलमंत्र था


   राष्ट्रपिता महात्मा गांधी की यह ७२वीं पुण्यतिथि है, ३० जनवरी १९४८ को, बिड़ला हाउस में नाथूराम गोडसे ने गोली मार कर उनकी उस समय हत्या कर दी थी, जब वे प्रार्थना स्थल पर जा रहे थे।


            महात्मा गांधी ने विश्व को बिसवीं सदी में, एक ऐसा दर्शन सूत्र दिया अहिंसा जो आज बेहद प्रासंगिक है। यह वह समय था जब ब्रिटिश का दुनिया पर राज था और १९ सदी में दो विश्वयुद्ध हए, हिंसा और ब्रिटिश अत्याचार का दौर चरम स्तर पर था। भारत को आजाद कराना देशवासियों और स्वतंत्रता संग्राम सेनानियों की पहली प्राथमिकता थी। स्वतंत्रता आंदोलन दो विचारधाराओं से लड़ा जा रहा था। दोनों का लक्ष्य एक था भारत की आजादी। एक तरफ उग्र विचार वाले सेनानी देशभक्त थे तो दूसरी विचारधारा वालों का नेतृत्त्व महात्मा गांधी कर रहे थे।


            महात्मा गांधी दूरदर्शी थे। १८५७ में प्रारंभ हुए, स्वतंत्रता आंदोलन का उन्होंने अध्ययन किया था, दक्षिण अफ्रीका से लौटने के बाद उन्होंने यह महसूस किया कि, अंग्रेजों से शास्त्रो से आजादी प्राप्त नहीं की जा सकती है। भारत में बेहद गरीबी थी, अंग्रेज लूट भी रहे थे और अत्याचार भी कर रहे थे। आदिवासी महिलाओं के साथ बलात्कार, हत्या, निर्दोष और स्वतंत्रता आंदोलन का समर्थन कर रहे लोगों को झूठे मामलों में फंसना, अंग्रेजों का यह अत्याचार तेजी से बढ़ रहा था। ऐसी स्थिति में गांधीजी ने भारतीय दर्शन संस्कृति के मूल तत्त्व ‘‘अहिंसा’’ को अंग्रेजों के विरूद्ध हथियार बनाया। अहिंसा व्रत एक ऐसा व्रत है जिसके पालन से जीव मात्र में वैरभाव ही निर्मूल हो जाता है। अहिंसा का शाब्दिक अर्थ है - न मारना।


            श्रुति कहती है - ‘मा हिंस्यात् सर्वाणि भूतानि’ अर्थात किसी भी प्राणी की हिंसा मत करो। वेदों में कइ स्थलों पर अहिंसा के लिये प्रार्थनाएँ मिलती है। योग दर्शन में अष्टांग योग के प्रथम अंग यम को परिभाषित करते हुए महर्षि पतंजलि कहते है -


            ‘अहिंसा सत्यास्तेय ब्रह्मचर्या परिग्रहा यमा:।।


            अर्थात यम के पांच प्रकार में अहिंसा प्रथम अंग है। अहिंसा की व्याख्या करते हुए कहा गया है - ‘मन वाणी और शरीर से किसी भी प्राणी को कभी किसी प्रकार कि चिंतामात्र भी दु:ख न देना अहिंसा है।


            गांधी भी जानते थे, अहिंसा शस्त्र ही अंग्रेजों को पराजित करायेगा। यदि आजादी के लिये हिंसा का मार्ग अपनाया तो लाखों करोड़ों निर्बल, गरीब भारतवासी अंग्रेजों को गोलियों का निशाना बन जायेंगे, भारतीय देश के लिये मर भी जायेंगे, लेकिन करोड़ों लोगों की मौत की कीमत पर प्राप्त होने वाली आजादी वर्षों तक त्रासदायक रहेगी। इसलिये जिस प्रकार अंग्रेज भारत आये थे, उसी तरह बापू ने उन्हें उनके देश का रास्ता दिखा दिया।


लेखक राज्य स्तरीय अधिमान्य पत्रकार हैं ..