स्वतंत्रता के बाद अब क्या करें ?


‘‘अब आपका कर्तव्य हैं, जब आप सहजयोग में आ गए हैं, कि पहले अपने भारतवर्ष में क्या खराबी है, क्या बुराईयां है, उसको हटाना चाहिए और इसके प्रति नितांत श्रद्धा रखनी चाहिए। तभी आपका देश दुरूस्त हो सकता है, नहीं तो आजकल जैसे लोग आए हैं, आप सब जानते हैं, बताने की जरूरत नहीं है। सिर्फ ये हैं कि हमें वैसा नहीं होना हैं, हमें अपने देशवासियों के लिए और हमारे देश के लिए सब कुछ करना चाहिए, जो हम कर सकते हैं।‘‘


                                                                                                         - प.पू. श्री आदिशक्ति माताजी श्री निर्मला देवी


हम सब हिन्दुस्तानी है और इस भारतवर्ष में रहते हैं,  इसी के अन्न, जल से हम पलें हुए है और इसी के सहारे हम जीए रहेंगे। आगे भी इसी के सहारे जीना है। हमारे बच्चों के लिए जो आने वाली पीढ़ी हैं, उसके लिए यही संदेश होना चाहिए कि अपनी भारत माता से प्यार करों, अपने देश के  प्रति बहुत अधिक अपनापन होना चाहिए। हमने देखा हैं, परदेश में, आश्चर्य की बात हैं कि एक-एक देश में हर एक आदमी अपने देश के बारे में जानता है और अपने देश के प्रति बड़ा अभिमान रखता है। उनसे पुछने पर कि भई आपके देश में तो इतनी गरीबी हैं तो भी क्या हुआ? यह हमारा जो देश है। इसी ने हमें जन्म दिया है, हम तो ये हमारा देश जो हैं, ये हमारे लिए महान चीज हैं।


 इसी प्रकार हर हिन्दुस्तानी, भारतीय को सोचना चाहिए कि ये भारतवर्ष जो हैं, या भारत जिसे कहते है, जो हिन्दुस्तान है, ये हमारा देश है और इसके लिए हमें देशभक्ति रखनी चाहिए। जैसे ही आपके अंदर देशभक्ति आ जाएगी आपको आश्चर्य होगा कि अनेक गुण आपके अंदर आ जाएंगें, अनेक गुण। सबसे बड़ा गुण तो ये आएगा कि आपके अंदर जो बेकार की महत्वकांक्षाए हैं और जो आपके अंदर बेकार की इच्छाएं हैं, सब खत्म हो जाएगी। लगेगा कि इस देश की उन्नति हो तो हमारी भी उन्नति हो जाएगी। हमने तो अपने जीवन में बहुत से लोग देखे। हमारा समय और था। हम बड़े भाग्यशाली हैं कि ऐसे-ऐसे महान त्यागमूर्ति लोग हमें देखे व उनको देखकर के हमने जाना कि इस देश का स्वातंत्रय उन्होंने कमाया। स्वतंत्रता कमाने के बाद जो हाल हुआ वह आपको सबको मालूम है।


सहजयोग प्रणेता माताजी श्रीनिर्मलादेवी का जन्म 21 मार्च 1923 को मध्यप्रदेश के छिन्दवाडा में हुआ था । यदि उनकी देशभक्ति के बारे में जाने तो पता चलता हैं कि उन्हें बाद में अपने पिता के साथ उन्हें नागपुर जाना पडा। क्योंकि उनके पिता प्रसिद्ध वकील थे और गांधीजी के व्यक्तिगत आदेशानुसार उन्होनें नागपुर में स्वतंत्रता सेनानियों के मुकदमों की वकालत शुरू कर दी थी।


  स्वतन्त्रता आन्दोलन में अपनी सक्रिय भूमिका के कारण उनके माता.पिता जेल के अन्दर-बाहर आते जाते रहते थे। अतरू परिवार को घोर कठिनाइयां सहन करनी पडी। श्री माताजी के पिता श्री पी.के. साल्वे पाश्चात्यशैली के रहन-सहन के आदि थे परन्तु उन्होने सभी कुछ त्याग दिया और सच्चे भारतीय बन गए। उन्होंने खादी पहननी आरम्भ कर दी और जीवन पर्यन्त खादी पहनी। श्रीमाताजी बताती हैं कि उनके पिता श्री पी.के. साल्वे तिरंगा झंडा उठाकर जब उच्च न्यायालय पर जा चढे़ तो अंगे्रजों न उनके सिर पर गोली मार दी फिर भी उन्होंने वहाँ राष्ट्रीय झंडा फहराया तो उनकी बहादुरी पर लोग नाच रहे थे। तो उन्होंने कहा कि तुम सब वन्दे मातरम् गाओं। यह राष्ट्रगीत हमारी मातृभुमि के सौंदर्य व उनकी प्रकृति का वर्णन करता है।


 श्री माताजी को मिशनरी स्कूल से निकालकर उनके पिताजी ने स्थानीय भारतीय स्कूल में भेज दिया और संस्कृत पढ़वार्इ । श्री माताजी सात वर्ष की आयु में उनके पिताजी के साथ महात्मा गांधी के पास गर्इ जो 70 मील दूर रहते थे। पहली भेंट में ही गांधीजी ने उन्हें बहुत पसन्द किया और कहा ष्इस बच्ची को यहीं छोद दो। गांधी जी श्री माताजी को बहुत स्नेह करते थे और प्रेमपूर्वक उन्हें ‘‘नेपाली‘‘ पुकारते थे। स्कूल से वापिस आने पर अवसर पाकर श्री माताजी गांधीजी के आश्रम लौट आती। आश्रम का जीवन अत्यंत अनुशासित था।


      बाद में भारत छोडो आन्दोलन में 19 वर्षीय युवा बालिका निर्मला ने भारत के स्वतंत्रता आन्दोलन में भाग लिया। एक बार उन्होने तिरंगा झण्डा लेकर अकेले बन्दूकधारी पुलिस दल के सामने धरना दिया। ये घटना सेंट उर्सुला स्कूल नागपुर के आहाते में हुर्इ। उनकी ब्रिटिश विरोधी गतिविधियों के कारण उन्हें विज्ञान महाविद्यालय नागपुर से निकाल दिया गया। स्वतंत्रता संग्राम की लड़ाई में उन्हें कई बार जेल जाना पड़ा तथा बर्फ की सिल्लियों पर उन्हें लेटाकर यातनाएं दी गयी। बाद में चिकित्सा.विज्ञान पढ़ने के लिए उन्होने लाहौर चिकित्सा महाविद्यालय में प्रवेश लिया। परन्तु 1947 के दंगे भड़कने के कारण महाविद्यालय बन्द कर दिया गया और उन्हें अपनी शिक्षा बीच में ही छोडनी पडी थी।